यूपी के बाहुबली विधायक विजय मिश्र सरकारी भूमि से बेदखल न्यायालय में धारा 67 के तहत दर्ज हुआ था मामला
भदोही : विधायक विजय मिश्र की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। तहसीलदार देवेंद्र यादव की अदालत ने नवधन में स्थित सरकारी भूमि से बेदखल कर दिया है। पुलिस और प्रशासन की टीम किसी भी समय सरकारी भूमि पर किए गए अवैध निर्माण को ढहा सकती है। हालांकि इस आदेश को विधायक के अधिवक्ता ने उच्च अदालत में चुनौती दी है। आरोप लगाया है कि विधायक को बगैर सुने ही तहसीलदार ने आदेश पारित कर दिया है।भदोही विधायक रवींद्रनाथ त्रिपाठी ने डीएम से शिकायत कर आरोप लगाया था कि विधायक विजय मिश्र और उनके परिवार के लोग नवधन में सरकारी भूमि पर कब्जा कर अवैध निर्माण करा लिया है।
तहसीलदार ज्ञानपुर देवेंद्र यादव की अगुवाई में तीन कानूनगो और 13 लेखपालों की टीम ने दो दिनों तक भारी पुलिस बल के साथ नवधन गांव में तीन हेक्टेयर ग्राम समाज की जमीन की पैमाइश की थी। इस मामले में नवधन के लेखपाल ने परिवाद दाखिल कराया था। परिवाद में कहा गया कि विधायक की जमीन 0.559 हेक्टेयर है जबकि ग्राम समाज की .600 हेक्टेयर जमीन पर उन्होंने चहारदीवारी बना ली है। तहसीलदार की अदालत ने विधायक को सरकारी भूमि से बेदखल कर दिया है। उप जिलाधिकारी जीपी यादव ने बताया कि अदालत से आदेश होने के बाद बेदखल की कार्रवाई की जाती है। प्रतिवादी इस आदेश के खिलाफ अपील भी दाखिल कर सकता है। जब तक कहीं से स्थगन आदेश नहीं प्राप्त हो जाता है तब कार्रवाई को रोकी नहीं जा सकती है।
अतिक्रमणकारियों के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई
विधायक के अलावा चंदु पुत्र मुन्नीलाल, बिजली, बब्बूदीन पुत्र अशर्फी, कृपाल पुत्र जलालुद्दीन, अफसाना पत्नी जमीर, गुड्डू, मुन्ना व हकीम पुत्रगण जुम्मन समेत 28 अन्य लोगों पर भी बेदखली का मुकदमा दर्ज किया गया है, इन सभी ने ग्राम समाज की और जमीनों पर अवैध निर्माण करा लिया है। तहसीलदार की अदालत में अभी तक इन मामलों को निस्तारित नहीं किया गया। तहसील के एक अधिवक्ता ने बताया कि विधायक अथवा उनके अधिवक्ता हाजिर नहीं हुए थे जबकि अन्य लोग हाजिर होकर अपना पक्ष रख रहे हैं।
दबाव में कानून भी भूल जा रहे अधिकारी
विधायक विजय मिश्र की पुत्री एवं अधिक्ता रीमा पांडेय का कहना है कि शासन-सत्ता के दबाव में अधिकारी कानून को भूल जा रहे हैं। मेरे पिता ने भगवान परशुराम की विशालकाय प्रतिमा स्थापित कराने के लिए नवधन में ही अपनी निजी भूमि संस्था को दान की है। ऐसे में सरकारी भूमि कब्जा करने का सवाल ही नहीं उठता है। शासन-सत्ता के दबाव में मनमानी तरीके से पैमाइश कराकर फर्जी कार्रवाई की जा रही है। दबाव में तहसीलदार की ओर से नोटिस भी नहीं दी गई।